बदहाली के आंसू बहा रहा 1947 में कस्तूरबा के नाम पर बना अस्पताल

धरसींवा. महात्मा गांधी के सिद्धांतों के जुड़ी संस्थाओं में से एक कस्तूरबा गांधी ट्रस्ट शासन-प्रशासन की उपेक्षाओं का शिकार हो चुका है। यहां स्थिति यह है कि गर्भवती महिलाओं को प्रसव सुविधा देने वाला यहां का अस्पताल में पिछले पांच सालों से बंद पड़ा हुआ है। आजादी की लड़ाई में भारत के दीगर प्रान्तों की तरह छत्तीसगढ़ के लोगों ने कभी अपनी भूमिका निभाई थी व देश के आजाद होते ही स्वर्णिम भारत के सपनों को साकार करने के लिए कई गांधी-वादी संस्थाओं ने काम करना शुरू किया, जिसकी स्थापना सरकार के संरक्षण में ट्रस्ट के रूप में हुई। जिसने लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वावलंबी बनाने की दिशा में काम करना शुरू किया। इसके साथ ही महिलाओं के स्वास्थ्य सुविधा और सबल बनाने के लिए कस्तूरबा राष्ट्रीय स्मारक की स्थापना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिला व रायपुर जिला के ग्राम सारागांव में की गई थी, जो लगातार काम करती रही, लेकिन प्रशानिक उदासीनता व सहायता के अभाव में यह संस्था आज अपनी अस्तित्व की तलाश कर रही है।

प्रसूति का एक मात्र अस्पताल था कस्तूरबा राष्ट्रीय स्मारक ग्राम पंचायत सारागांव के सरपंच पुन्नी बाई देवांगन व ग्रामीणों ने बताया कि 1947 में गांव की जमीन पर कस्तूरबा राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की स्थापना हुई थी, उस समय अंचल के 50 किलोमीटर से 75 किलोमीटर तक कोई भी महिलाओं के लिए प्रसूति अस्पताल नहीं हुआ करता था। उस समय एक मात्र कस्तूरबा राष्ट्रीय स्मारक अस्पताल था, जहां हजारों गर्भवती महिलाओं की प्रसूति कर स्वास्थ लाभ लेती थी। वहीं गरीब बच्चों के लिए बालवाड़ी केंद्र चलाया जाता था, जो अब सिर्फ नाम का ही रह गया है। आज इस संस्था को किसी भी प्रकार से कोई भी सहायता नहीं मिलने के चलते कस्तूरबा स्मारक ट्रस्ट का अस्पताल को विगत पांच वर्ष से पूर्ण रूप से बन्द कर दिया गया है।

आज पूरी तरह से मरणासन्न स्थिति में आपको बता दे की आजादी के बाद सन 1947 में ही तत्कालीन मध्यप्रदेश, अब छत्तीसगढ़ के महासमुंद और रायपुर जिला में महात्मा गांधी के सिद्धांतों और उनके विचारों में चलकर महिलाओं को सबल बनाने के लिए कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की स्थापना की गई, जो आज पूरी तरह से मरणासन्न स्थिति में आ गई है। धरसींवा ब्लाक के ग्राम सारागांव में स्थित कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट, जो आजादी के दौर में लोगों द्वारा प्राप्त धन पर ग्रामीण महिलाओं और बच्चों के हित मे स्थापित इस ट्रस्ट की खराब स्थिति से लोग आहत है। सन 1947 में स्थापित यह शाखा उचित देखरेख और उचित सहयोग के साथ सेविकाओं के अभाव में बदहाल अवस्था में है। देखरेख और फंड की कमी पहले क्षेत्र में एक मात्र कस्तूरबा स्मारक ट्रस्ट अस्पताल था, जहां महिलाओं को उचित इलाज व प्रसूति होती थी। मगर आज देखरेख व फंड के अभाव के साथ साथ महिलाएं प्रसूति के लिए मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल चली जाती है, जिसके कारण यह अस्पताल विगत पांच वर्ष से बन्द हो गया है।

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